"...चाण्डाल
के लिए शिक्षा की जितनी आवश्यकता है, उतनी ब्राह्मण के लिए नहीं।
यदि किसी ब्राह्मण के पुत्र के लिए एक शिक्षक आवश्यक हो, तो चाण्डाल के लड़के के
लिए दस शिक्षक चाहिए। कारण यह है कि जिसकी बुद्धि की स्वाभाविक प्रखरता प्रकृति
द्वारा नहीं हुई है, उसके लिए अधिक सहायता करनी होगी। चिकने-चुपड़े पर तेल लगाना
पागलों का काम है। दरिद्र, पददलित तथा अज्ञ लोग तुम्हारे ईश्वर बनें।..."
(स्वामी
विवेकानन्द द्वारा गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखे पत्र से)
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