रविवार, 12 जनवरी 2014


 "भारत को समाजवादी अथवा राजनीतिक विचारों से प्लावित करने के पहले आवश्यक है कि उसमें आध्यात्मिक विचारों की बाढ़ ला दी जाय। सर्वप्रथम, हमारे उपनिषदों, पुराणों और अन्य सब शास्त्रों में जो अपूर्व सत्य छिपे हुए हैं, उन्हें इन सब ग्रन्थों के पन्नों से बाहर निकालकर, मठों की चहारदीवारियों को भेदकर, वनों की शून्यता से दूर लाकर, कुछ सम्प्रदाय-विशेषों के हाथों से छीनकर देश में सर्वत्र बिखेर देना होगा, ताकि ये सत्य दावानल के समान सारे देश को चारों ओर से लपेट लें- उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सब जगह फैल जायें- हिमालय से कन्याकुमारी तक और सिन्धु से ब्रह्मपुत्र तक सर्वत्र वे धधक उठें, सबसे पहले हमें यही करना होगा।"  


"इन सुधारकों से कह दो, मैं सुधार में विश्वास नहीं करता; मैं आमूल परिवर्तन में विश्वास करता हूँ।" 

शुक्रवार, 31 मई 2013


"हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुजरना होता है- उपहास, विरोध और स्वीकृति। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं। परन्तु मुझे दृढ़ तथा पवित्र होना चाहिए और भगवान में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे।"


"यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे; किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को बन्द कर दो, वे तुरन्त (ईश्वर न करे) तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। मेरे-जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे-स्नेहियों द्वारा सदा ठगे जाते हैं।"

रविवार, 14 अप्रैल 2013


"शुद्ध बनना और दूसरों की भलाई करना ही सब उपासनाओं का सार है। जो गरीबों, निर्बलों और पीड़ितों में शिव को देखता है, वही वास्तव में शिव का उपासक है। पर यदि वह केवल मूर्ति में ही शिव को देखता है, तो यह उसकी उपासना का आरम्भ मात्र है।"


"मनुष्य को, वह जितना नीचे जाता है, जाने दो। एक समय ऐसा अवश्य आयेगा, जब वह ऊपर उठने का सहारा पायेगा और अपने आप में विश्वास करना सीखेगा। पर हमारे लिए यही अच्छा है कि हम इसे पहले ही जान लें।"


"मेरी दृढ़ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है; धीरे-धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। साहसी शब्द और उससे अधिक साहसी कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है।"