सोमवार, 18 फ़रवरी 2013


घर की परेशानियों से भी स्वामी जी आजीवन व्यथित-दुखी रहे. अपनी बीमारियों से अधिक वह अपनी मां, भुवनेश्वरी देवी के लिए बेचैन और परेशान रहे. कहते हैं, जब तक पिता विश्वनाथ दत्त जीवित थे, उनके परिवार का मासिक खर्च था, लगभग एक हजार रुपये. वर्ष 1884 में उनकी मौत के बाद स्वामी जी की मां, भुवनेश्वरी देवी ने वह खर्च घटा कर तीस रुपये तक ला दिया. अचानक आयी मुसीबत और दरिद्रता के बीच भी भुवनेश्वरी देवी का असीम धैर्य अपूर्व था. इधर स्वामी जी में आजीवन मां को सुख न दे पाने की पीड़ा रही. मां, पल-पल गरीबी में समय काटती थी. उनके लिए पैसे का प्रबंध करना, स्वामी जी के लिए सबसे कठिन था. इसका एहसास भी उन्हें आजीवन रहा. एक जगह उन्होंने कहा भी है, ‘जो अपनी मां की सच में पूजा नहीं कर सकता, वह कभी भी बड़ा नहीं हो सकता.
( साभार: http://prabhatkhabar.com/node/260223 ) 


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